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मुस्कान में रहता हूँ

श्वेत कागज में
कलम घिसता हूँ,
इधर-उधर की
कहीं कुछ भी नहीं
जो है दिल में
उसे लिखता हूँ।
विजुगुप्सा से
दूर रहता हूँ
प्रेम के भाव बिकता हूँ।
मिट्टी में खेलते बच्चों की
सच्ची पहचान में रहता हूँ,
सड़क पर पत्थर तोड़ती
माँ के
आत्मसम्मान में रहता हूँ।
बुजुर्गों के सम्मान में और
युवाओं के अरमान में
रहता हूँ।
कवि हूँ हर किसी की
मुस्कान में रहता हूँ।

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