बहुत गमगीन हो रही ज़िन्दगी
मुस्कुराने की दवा चाहिए।
मर्ज बनकर खड़ी है नफरते
प्यार की एक हवा चाहिए।।
चाहते हैं सभी सेकना रोटियाँ
तप्त-सा कोई तवा चाहिए।
इन्सान बनकर रहे सर्वदा
बनने को ना खुदा चाहिए।।
प्रेम की दुनिया सलामत रहे
हर नजर इश्के अदा चाहिए।
ये ‘विनयचंद ‘ मायूस होना नहीं
दिल दरिया दया पे खरा चाहिए।।