मुस्कुरा उठे लब मेरे,
देख कर नभ में तारे।
मुस्कुरा उठे लब मेरे,
देख उषा की लालिमा।
भोर की ठॅंडी बहती पवन,
प्रफुल्लित कर गई है मन।
ये परिन्दों का चहचहाना,
कह रहा कविता कोई।
प्रातःकाल ही चाहता है,
आज मेरा मन गुनगुनाना॥
_____गीता
मुस्कुरा उठे लब मेरे,
देख कर नभ में तारे।
मुस्कुरा उठे लब मेरे,
देख उषा की लालिमा।
भोर की ठॅंडी बहती पवन,
प्रफुल्लित कर गई है मन।
ये परिन्दों का चहचहाना,
कह रहा कविता कोई।
प्रातःकाल ही चाहता है,
आज मेरा मन गुनगुनाना॥
_____गीता