Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-9
दुर्योधन भले हीं खलनायक था ,पर कमजोर नहीं । श्रीकृष्ण का रौद्र रूप देखने के बाद भी उनसे भिड़ने से नहीं कतराता । तो जरूरत…
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उषा काल की मॅंजुल बेला
उगते सूर्य की रश्मियाँ, जब-जब पड़ी हरित किसलय पर सुनहरी पत्तियाँ हो गईं, देख सुनहरी आभा उनकी, आली, मैं कहीं खो गई। वृक्षों के बीच-बीच…
प्रातःकाल ही चाहता है,
आज मेरा मन गुनगुनाना॥
——- बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, बहुत लाजवाब रचना।
इस सुन्दर और उत्साहवर्धक समीक्षा के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सतीश जी
प्रातः काल का सुंदर वर्णन, अति सुंदर
बहुत-बहुत धन्यवाद अमिता जी
बहुत खूब