मैं मुस्कुराती हूँ,
गुनगुनाती हूँ,
कभी उत्साह में उड़ती
कभी गम के कुंए में डूबती,
फिर
गोता लगाकर लौट आती,
उतरती डूबती सी
डूबती फिर से उतरती डूबती सी,
एक दिन दो दिन, महीने, वर्ष बीते,
फिर भी
आपको भूले भुलाए याद करती सी चली,
उस ओर अपने पग बढाती सी चली,
जिस ओर केवल आश है,
झूठी दिलासा साथ है,
जिस बिंदु को सच्चे समय ठुकरा दिया,
वो बिंदु फिर मिलता नहीं
यह आज के वेदों का सच है,
झूठी दिलासा साथ है ,
मुहब्बत नाम है मेरा,
दिलासा काम है मेरा।
……………………………………..डॉ. सतीश पांडेय, चम्पावत।