मेरी खिड़की से
कोई ख्वाब निकल
फिर खो गया
इन हवाओं में
अब मैं खिड़की
बंद रखने लगा
अब ख्वाब आते है
भागते भी नहीं
बस इक घुटन सी
फैलती है उनके
साथ रहने से
हवा सी चीज़ है
ये ख़्वाब भी
बस महसूस होते है
इन्हे मुठी में
जकड नहीं सकते
ख्वाब हवाओं में ही
रहने को बने है
अब फिर मैंने
खिड़की खोल दी है
राजेश’अरमान’