मेरे जिस्म से हर रोज़ मेरे वस्त्र उतारे जाते हैं,
दरख्त काटकर पंछियों के घर उजाड़े जाते हैं,
साँसे हैं मेरी ही बदौलत यहाँ जिनके जीवन की,
उन्हीं हाथों से अक्सर मेरे वजूद उखाड़े जाते हैं।।
राही (अंजाना)
मेरे जिस्म से हर रोज़ मेरे वस्त्र उतारे जाते हैं,
दरख्त काटकर पंछियों के घर उजाड़े जाते हैं,
साँसे हैं मेरी ही बदौलत यहाँ जिनके जीवन की,
उन्हीं हाथों से अक्सर मेरे वजूद उखाड़े जाते हैं।।
राही (अंजाना)