कविता – मेरे पिया परदेशी
(छंदबद्ध कविता)
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चारों ओर शरद की धूम मची देख सखी,
पिया मेरे आयेंगे न जाने कब तक अब।
बीती बरसात आँख सूख गई अब मेरी,
नींद नहीं चैन नहीं हर गई भूख मेरी।
बिना पिया काटी है ये बरसात भरी रात,
दूरभाष में भी नहीं हुई अब तक बात।
ऐसी व्याधि से भरा है संसार आज यह,
फिकर है मेरे पिया जाने कैसे होंगे तब।
जा री शरद की हवा देख कर आ तो जरा,
मेरे परदेशी पिया कैसे हैं किधर हैं।
मिलें यदि तुझे कहीं मेरे परदेशी पिया,
बता देना मेरी आँखें व्यथित इधर हैं।
———– डॉ0 सतीश पाण्डेय