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मेरे शिव

ओ मेरे शिव, मैं सच में तुमसे प्यार कर बैठी

सबने कहा , क्या मिलेगा मुझे

उस योगी के संग

जिसका कोई आवास नहीं

वो फिरता रहता है

बंजारों सा

जिसका कोई एक स्थान नहीं

सब अनसुना अनदेखा कर दिया मैंने

अपने मन मंदिर में तुमको स्थापित कर बैठी

ओ मेरे शिव, मैं सच में तुमसे प्यार कर बैठी

सबने समझाया , उसका साथ है भूतो और पिशाचों से

वो क्या जुड़ पायेगा जज्बातों से

पथरीले रास्तों पे चलना होगा उसके साथ

लिपटे होंगे विषैले सर्प भी उसके आस पास

सब अनसुना अनदेखा कर दिया मैंने

अपने प्राण तुम्हारे सुपुर्द कर बैठी

ओ मेरे शिव, मैं सच में तुमसे प्यार कर बैठी

किसी की नहीं सुनी , किसी की नहीं मानी

एक तपस्वी को पाने मैं

उसकी साधना में चली

वर्षों तप किया मैंने, देखे कई उतरते चढ़ते पल

फिर भी अपना विश्वास न डिगने दिया

सिर्फ तुम्हारी धुन मन को लगी भली

खुद को रमा लिया तुम्हारी ही प्रतीक्षा में

मैं अपना सर्वस्व तुझ पर अर्पण कर बैठी

ओ मेरे शिव, मैं सच में तुमसे प्यार कर बैठी

तुम तो ठहरे मनमौजी , अपनी विरक्ति का कश लगया हुए

ऊपर से शांत , पर कंठ में विष समाये हुए

मैं जितना प्रेम दूँ वो कम है

ऐसी तेरी दीवानी बन बैठी

ओ मेरे शिव, मैं सच में तुमसे प्यार कर बैठी

अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”

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