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मैं तुम्हारी धरोहर

मैं तुम्हारी धरोहर

मैं पृथ्वी बोलूँ आज अपने दिल की,

सुनू,देखूँ मैं भी तुमसा तुम ये जानो,

बोला तुम्हरा हर शब्द हर पल मैं सुनती,

सुनू वो जिसे सुन खिल उठती मैं भी,

दिल न चाहें कभी वो भी सुनना पड़ता,

देखूं उसे भी जो सँवारे सजाएं मुझको,

होता वो भी जो हर पल रौंदे मुझको,

फ़र्क रौंदने का हर का मैं भी समझूँ,

भरू पेट किसी का तो पेट मेरा भरता,

नियत नहीँ भरी होती वो रहता भूखा,

हूँ मैं तुम्हारी जननी अब तो मुझे पहचानों,

दे गए तुम्हें अपने तुम्हारे धरोहर मान मुझको,

करो संचय धरोहर की मान तुम अपना,

कल देते समय हो मुस्कान चेहरों पर तुम्हारी,

करे सलाम तुम्हें पीढियां देख धरोहर तुम्हारी।

प्रतिभा जोशी

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