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मै परियाई श्रमिक हू

रोज़ 9 बजे से 5 की ड्यूटी
फिर ओवरटाइम
बचता इतना सा समय जब लिखता हूँ

फिर आया लॉक डाउन जब घर मे बंद
काम बंद सब बंद
भूख से बदहाल ज़िन्दगी

सपने जो थे सब गलत हो गए
याद आया तोह सिर्फ अपना गाओं
मीलों का फासला तय करने निकल पड़े
क्यों की घर पे बैठे मरने से बेहतर रास्ते मे दम तोडना

कागज़ के बिना राशन कौन देगा
कौन बिटिया को चलने लायक चप्पल देगा
हाथ मे गुड़िया लिए मेरी गुड़िया चली
मज़े की बात देखो साहब जो हाथ कभी नहीं फैली
पहली बार कुछ भी लेने के लिए फैली है

तुम इन सब से जुदा
सोशल मीडिया मे डालगोना कॉफ़ी के रेसिपी मे मग्न हो
एक्टर एक्ट्रेस की ज़िन्दगी झूठे राष्ट्रवाद मे मस्त हो
मेरा देश जल रहा है बेरोज़गारी किसान आत्महत्या से जूझ रहा है
खबर यह नहीं बनती की भूख से लोग मर रहे है
कोरोना जान लेवा है पर भूख उस्से ज्यादा डरावनी है

बोलोगे मै अकेले कैसे मदत कर सकता हू
खुद से पूछो क्या यह सच है

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