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मोहलत

थोड़ी मोहलत मांगता हु रब
बस एक बार उनका दीदार हो जाए
फासले जो फैसलों की वजह से थे
बस उस पर सुलह हो जाए

यूँ रूठना भी कुछ होता है क्या
एक बार मुरना तोह बनता है ना यार
रो तू भी रही थी मैं भी
एक बार मिलाना तो बनता है ना यार

ए खुदा बोल तेरी रज़ा है क्या
इन दूरियों की वजह है क्या
मांग ता कुछ नहीं तुझसे
बस इस बेरुखी की खता है क्या

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