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मौजूदा हालात पे ग़ज़ल

आदाब

मुफ़लिसों को क्यों मिली है जिंदगी
बारहा ये सोचती है जिंदगी

ज़िंदगी जैसे मिली ख़ैरात में
ऐसे उनको देखती है जिंदगी

इस जहाँ में बुज़दिलों के वास्ते
बस क़ज़ा है, तीरगी है ज़िन्दगी

ख़ुदकुशी से क्या मिला है आज तक
सामना कर कीमती है जिंदगी

बंद आँखों से कभी सुन सरगमें
इक सुरीली बाँसुरी है जिंदगी

दिल में हो उम्मीद की कोई किरन
रौशनी ही रौशनी है जिंदगी

हर घड़ी तैयार रहना ‘आरज़ू’
इम्तिहानों से भरी है जिंदगी

आरज़ू

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