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यही जिंदगी हो गई उसकी

गलती उसकी कुछ नहीं थी
कुदरत की करामात थी,
बाजार में कालिया के इस बार
बारह बच्चे हो गए।
अब उनकी परवरिश में
लग गई,
सभी को दूध पिलाना,
उतनों के लायक दूध बने
ऐसा पौष्टिक आहार मिलता कहाँ है।
दिन भर दर्जनों साथियों के साथ
मुर्गे की दुकान बाहर इंतज़ार में
बैठे बैठे जब कुछ नहीं मिलता
जानवर की उस निराशा का
पार नहीं मिलता।
बारह को, आज इधर कल उधर ढोना,
लोगों की भाग भाग सुनना।
जबरन शब्जी वाले के ठेले के नीचे,
बच्चे ले जाना,
फिर उसका लाठी उठाकर
हट हट कहना,
फिर बच्चे को मुँह में लेकर
इधर उधर को दौड़ लगाना,
बारह के बारह को दुनियादारी दिखाना,
फिर उनके बड़े होते ही
दूसरे बच्चों का दुनियाँ में आ जाना,
यही जिंदगी हो गई उसकी।

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