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रजाई की महिमा

**हास्य रचना**
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सुबह-सुबह उठो नहीं,
रजाई में पड़े रहो
सूर्य की लाली हो
या पापा की गाली हो,
तुम निडर उठो नहीं,
तुम निडर डटो वहीं
बेशर्म बन के अड़े रहो,
रजाई में पड़े रहो
बहुत ज्यादा ठंड है,
ये ठंड बड़ी प्रचंड है
हवा भी चल रही,
धूप नहीं निकल रही
कोहरे की दस्तक द्वार पर,
और भी खल रही
बहुत ठंडा जल है,
ठंड बढ़ रही प्रतिपल है
माननी नहीं है हार,
पड़ ना जाओ तुम बीमार
चाय का अनुरोध हो,
कोई उठाए उसका विरोध हो
प्रातः हो या रात हो,
बस, रजाई में पड़े रहो
______✍️ गीता

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