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रात का फ़ितूर अब भी है

उस रात का फ़ितूर अब भी है
तेरे होठों से पिया था जी भरकर,
जाम-ए-उल्फ़त का नशा अब भी है ।
बहुत खलतीं हैं तुमसे ये अब दूरियाँ
क़रीब आने की वजह अब भी है ।
पास आओ, करो फ़िर वही नादानियाँ
दिल लगाने की इल्तज़ा अब भी है ।
मुझ में फ़िर से बिखर कर समा जाओ तुम
लिपट जाओ मुझसे किसी बेल की तरह
मेरे पहलू में आकर सिमट जाओ तुम
ग़र शौक़-ए-वफ़ा उधर अब भी है ।

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