दशहरे का रावण सबसे पूछ रहा है
हर वर्ष देखा है मैंने स्वयं को दशहरे पर
श्रीराम के हाथों से जलते हुये,
सभी को बुराई पर अच्छाई की जीत बताते हुये।
उस लंकेश को तो मर्यादा पुरुषोत्तम ने मारा था,
प्रभु श्रीराम ने उसकी अच्छाईयों को भी जाना था।
सभी इकट्ठे होते हैं रावण को जलाने के लिए,
दुनिया से पूरी तरह बुराईयों को मिटाने के लिए।
आज रावण स्वयं पूरी भीड़ से यह कह रहा है,
तुम में से कौन श्रीराम जैसा है यह पूछ रहा है?
क्या तुम अपने अन्दर की बुराइयों को मिटा पाये हो ?
क्या तुम सब अंशमात्र भी स्वयं को श्रीराम-सा बना पाये हो?
यदि उत्तर नहीं है तो क्यों मुझे बुरा मानकर रावण दहन करने आते हो?
तुम स्वयं ही हो बुरे तो क्यों मुझे हर वर्ष जलाने
आ जाते हो ?
यदि वास्तव में विजयादशमी मनानी है तो
मुझ जैसे कागज के बने रावण को मत जलाओ,
बल्कि अपने अन्दर के पापी रावण को मिटाओ
निर्भया और सीता जैसी नारी की लाज बचाओ
मत बनो विभीषण सम कपटी
लक्ष्मण सम भाई बन जाओ
ना करो लालसा बालि की तरह कुर्सी की
तुम भरत, अंगद सम बन जाओ
राजा दशरथ की तरह तुम अपने वचन
पर अडिग हो जाओ
शिक्षा प्राप्त कर प्रभु श्रीराम के व्यक्तित्व से फिर आना विजयादशमी मनाने तुम
अपने अन्तर्मन के रावण का दहन करके फिर आना मुझे जलाने तुम…
काव्यगत सौन्दर्य एवं विशेषताएं:-
यह कविता मैंने प्रतियोगिता की फोटो को ध्यान में रखते हुए लिखी है जिसका विषय ‘रावण दहन’ है.
मैंने इस कविता के माध्यम से सामज में व्याप्त बुराईयों के ऊपर कटाक्ष किया है.
रावण के माध्यम से समाज में फैली समस्याओं, कुरीतियों और हर मनुष्य के अन्दर छुपी बुराईयों को दर्शाया है.
मेरा आशय रावण को श्रेष्ठ दिखाने का नहीं वरन् समाज को एक अच्छा संदेश देने की है जिससे वह अपने अन्तर्मन को स्वच्छ करके राम के चरित्र से सीख ले और कुपथ को छोंड़कर अच्छे पथ पर अग्रसर हो.
समाज में नई चेतना आए और रामराज्य की स्थापना हो सके.