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राही

थक कर के बैठ जाऊँ वो “राही” मैं नहीं,

आँखों में ठहर जाऊँ वो आँसु मै नहीं,

चिराग हूँ माना बुझना है मुझे मगर,

रौशन ज़माना जो ना कर पाऊँ वो मैं नहीं,

दिखता हूँ कविताओ में झलक अपनी,
अपनी जो पहचान ना छोड़ पाऊँ वो मैं नहीं,

अकसर होता है खामोशियों में भी ज़िक्र मेरा,

तस्वीर अपनी सबके दिलों में ना बना पाऊँ वो मै नहीं।

राही (अंजाना)

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