रिश्ते

लओट कर ना आया,ओ रहबर – रहगुजर मेरा,
त उमर रहा,तनहा सफर मेरा,

हर रिश्ते फरेब देते रहे मुझे,ज़िन्दगी के हर मोड़ पर,
बेवजह नेछावर कर दिए मैंने लहु का एक एक कतरा मेरा,

ये फज़ा भी रूठी रूठी सी लगती है मुझसे,
ये उसी तरफ बहती हैं,जहाँ जाता नहीं रास्ता मेरा.

एक कसम के खातिर सारी उम्र गुजर दी,
कभी कभी सोचता हूँ ” महमूद “,
क्या शर्त के बुनियाद पे टीका था हर रिश्ता मेरा.

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