रुख़्सत कुछ इस तरह हो गए
वो जिंदगी से मेरी,
मानो बिन मौसम की बरसात
झट से गिरकर तेज़ धूप सी खिला जाती हो,
कम्बख़त मुझे थोड़ा तो भींग लेने देते
कुछ देर उसके जाने के बाद
उसके होने का एहसास तो कर लेता।।
-मनीष
रुख़्सत कुछ इस तरह हो गए
वो जिंदगी से मेरी,
मानो बिन मौसम की बरसात
झट से गिरकर तेज़ धूप सी खिला जाती हो,
कम्बख़त मुझे थोड़ा तो भींग लेने देते
कुछ देर उसके जाने के बाद
उसके होने का एहसास तो कर लेता।।
-मनीष