कूड़े के ढेरों में
कुछ तो मिलेगा,
जरा सा खुशी का
सहारा मिलेगा।
नन्हें हैं वे,
रात भर सोचते हैं,
प्रातः को कूड़े में
पथ ढूंढते हैं।
बहुत खुश हुए
जब मिली एक कॉपी
आधी लिखी थी
खाली थी आधी।
अब सोचते हैं
कलम गर मिले तो
नाम खुद लिखना
सीखना है हमको।
मगर भूख कहती है,
कलम और कॉपी
छोड़ो अभी पहले
रोटी तो खोजो।
जिंदा रहें
यह जरूरी है पहले,
रोटी का होना
जरूरी है पहले।
—-डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय