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रोशनी तरफ की न खिंचते जा

मन मेरे! कीट सा पतंगे सा
इस तरह से अंधेरी रातों में
रोशनी तरफ की न खिंचते जा
झूठ के हाथ यूँ न बिकते जा।
ओ कलम! हाथ मेरे आकर
अब न रुक वेदना को कहते जा
जो कुछ हो पीड़ इस जमाने की
उसको कागज में खूब लिखते जा।
ओ कदम! डर न तू डराने से
सत्य की राह पग बढ़ाने से
विघ्न बाधाएं खूब आएं भले
मुड़ न पीछे तू आगे बढ़ते जा।
मन मेरे! रूठ जाए दुनिया ये
सबके सब मुँह चुरा के चलते बनें
तब भी विचलित न होना राही तू
अपने कर्मों पथ में चलते जा।

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