ज़िंदगी की तपिश बहुत हमने सही,
ये तपन अब खलने लगी।
रौशनी की सदा आस ही रही,
रौशनी की कमी अब खलने लगी।
बहुत चोटें लगीं, बहुत घाव सहे
सहते ही रहे कभी कुछ ना कहे,
वो घाव अब रिसने लगे,
मरहम की कमी सब खलने लगी।
औरों को दिए बहुत कहकहे,
अपने हिस्से तो .गम ही रहे।
ये .गम अब मेरे हिस्से बन चले,
.खुशियों की कमी अब खलने लगी।
रौशनी की सदा आस ही रही,
रौशनी की कमी अब .खलने लगी।