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लगी है आग जंगल मे

लगी है आग जंगल में
न जाने कौन है ऐसा
रगड़ माचिस की तीली को
जला कर चल दिया घर को।
इधर घर जल रहे लाखों
विकल हैं भस्म हैं प्राणी
उधर है मौज में लेटा
धुँवा महसूस करता है।
नहीं भू पर था बरसा जल
हलक सूखे थे जीवों के
लगाये टकटकी थे वे
निरन्तर नभ के मेघों पर।
इधर जल की जगह बरसी
मुसीबत आग बन उन पर
सभी कुछ भस्म कर डाला
किसी दानव की तीली ने।
ओस की बूंद पीकर वे
बचाये थे स्वयं साँसें
लगाकर आग मानव ने
जला संसार डाला सब।
अधजले सोचते हैं कुछ
बिगाड़ा था क्या हमने जो
लिया इंसान ने बदला,
किया आखिर था हमने क्या।

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