लावारिस बचपन
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सड़कों पर भटक-भटक कर है कैसे बचपन बीता,
और नहीं खाने को है एक
निवाला मिलता…
जाने कहाँ हैं मेरे माँ-बाप
नहीं मैं जानू,
मैं तो झुग्गी बस्ती को ही
अपना घर-बर मानू…
लालन-पालन मेरा अनाथ आश्रम में हुआ है,
यह लावारिस बचपन सड़कों के किनारे ही कटा है…
मैंने ना देखा सुनहरा बचपन
ना देखी शोख जवानी,
बस बचपन से करी मजूरी
और गलियों की धूल है छानी…