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लौट आ घर

दूर चले गये राही
आ अब लौट आ,
कब तक रहेगा
रूठा-रूठा
तेरे बिना मैं भी तो
रहता हूँ टूटा-टूटा।
अपने दो बोल सुना जा
अब तो आ जा।
जिद न कर,
लौट आ घर।
तेरे बिना ये फिजायें
सूनी ही नहीं शून्य हैं,
जीते जी, जी रहा है मर
जिद न कर
लौट आ घर।
जीवंत कर दे महफ़िल को
अहसास दिला दे मुझ बुझदिल को,
कि प्रेम के अभाव में
नीरस है जीवन सफर
जिद न कर
लौट आ घर।

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