मां तुझ से है मेरी यही इल्तज़ा।
तेरी खिदमत में निकले मेरी जां।
तेरे कदमों में दुश्मनों का सर होगा,
गुस्ताख़ी की उनको देंगे ऐसी सजा।
गर उठा कर देखेगा नजर इधर,
रूह तक कांपेगी देख उनकी कज़ा।
कभी बाज नहीं आते ये बेगैरत,
हर बार शिकस्त का चखकर मज़ा।
दुश्मन थर – थर कांपेगा डर से,
वंदे मातरम गूंजे जब सारी फिज़ा।
देवेश साखरे ‘देव’