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वचन

जब कभी भी टूटे ये तंद्रा तुम्हारी,
जब लगे कि हैं तुम्हारे हाथ खाली!

जब न सूझे ज़िन्दगी में राह तुमको,
जब लगे कि छलते आये हो स्वयं को!

जब भरोसा उठने लगे संसार से ,
जब मिलें दुत्कार हर एक द्वार से!

जग करे परिहास और कीचड़ उछाले,
व्यंग्य के जब बाण सम्भले न सम्भाले!

ईश्वर करे जब अनसुना तुम्हारे रुदन को,
जब लगे वो बैठा है मूंदे नयन को!

न बिखरना, न किसी को दोष देना,
मेरे दामन में स्वयं को सौंप देना..!!

अपने नयनों में प्रणय के दीप बाले,
मैं मिलूँगी तब भी तुम्हें बाहें पसारे!!

©अनु उर्मिल’अनुवाद’

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