वृक्षों को काट-काट कर,
इति करे सब वन
प्रकृति का सर्वनाश किया है,
कमाने को केवल कुछ धन।
दोहन कर-कर प्रकृति का भी,
चैन मनुज को ना आया
पशु , पक्षियों को बेघर किया है,
लालच वृद्धि करता प्रति क्षण।
प्रतिकार प्रकृति भी लेती है ,
फ़िर शुद्ध पवन कम देती है
फ़िर भी मानव को चैन नहीं,
काट रहा है फिर भी वन
हे मनुज तेरी ही हानि हो रही,
लगा लगाम लालच पर अपने
अब भी करदे ये सब बंद ,
अब भी करदे ये सब बंद ।।
*****✍️गीता*****