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वहशी समाज

सोचा था क्या हम सब ने!
ऐसा रोगी समाज ।
हर दूसरा चेहरा जैसे घिनौना आज ,
लगता कि जैसे हो गए मानसिक रोगी,
दहशत की बोलती है अब हर जगह तूती।
हर कोई आज जग में ,
अस्मत का भूखा बैठा ।
गिद्ध सी निगाहें जैसे एक्स-रे करेगा ,
मां-बाप गुरु भाई सब हो गए कसाई,
इंटरनेट व मोबाइल नहीं असली प्रलय मचाई।
लगता है बाढ़ राज्यों में नहीं पूरे देश में है आई ।
राक्षसों की पूरी फौज को अपने साथ बहाकर लाई। निमिषा सिंह

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