Site icon Saavan

वह पत्थर तोड़ती थी

वह पत्थर तोड़ती थी
पर दिल की कोमल थी
अपने सीने से लगाकर
बच्चों को रखती थी
भूँख जब लगती थी उसको
तो बासी रोटियाँ पोटली से
निकाल कर खा लेती थी
पर अपने बच्चों को
छाती का दूध पिलाती थी
अन्न का दाना जब नसीब होता था
तो गाना गाते हुए भोजन बनाती थी
मेरी कविता का जो विषय बनी है आज
वो मेरे गाँव की काकी कहलाती थी…

Exit mobile version