विपरीत Satish Chandra Pandey 4 years ago भरी दोपहरी की धूप में जिस तरह सूखने की बजाय गीला हो जाता है पसीने से बदन, ठीक उसी तरह भरी बरसात में हरा-भरा न होकर सुख गया है मन।