विपरीत
भरी दोपहरी की धूप में
जिस तरह सूखने की बजाय
गीला हो जाता है पसीने से
बदन,
ठीक उसी तरह
भरी बरसात में
हरा-भरा न होकर
सुख गया है मन।
भरी दोपहरी की धूप में
जिस तरह सूखने की बजाय
गीला हो जाता है पसीने से
बदन,
ठीक उसी तरह
भरी बरसात में
हरा-भरा न होकर
सुख गया है मन।
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सुख की जगह सूख होना चाहिए, बाकी सुन्दर विपरीतार्थक बन रहा है
भरी दोपहरी की धूप में
जिस तरह सूखने की बजाय
गीला हो जाता है पसीने से
बदन,
ठीक उसी तरह
भरी बरसात में
हरा-भरा न होकर
सूख गया है मन।
सही कहा आपने
विरोधाभास का सुंदर प्रयोग
सादर धन्यवाद
👍👍
सूख।
बाकी सब कुछ बेहतरीन है
👏
👍