तबाही मेरे मन की तुम
हंसी में लेके मत डोलो
मेरे गीतों को अपने
प्रेम के भेंट मत बोलो
जो कभी मरते-मिटते थे
मेरे अल्फाजों के दम पर,
कि अब देकर हमें कसमें
वो अब कहते हैं मत बोलो।।
तबाही मेरे मन की तुम
हंसी में लेके मत डोलो
मेरे गीतों को अपने
प्रेम के भेंट मत बोलो
जो कभी मरते-मिटते थे
मेरे अल्फाजों के दम पर,
कि अब देकर हमें कसमें
वो अब कहते हैं मत बोलो।।