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वो लड़का

उसके आँसू का संचय कर ईश्वर
समंदर रचता है।
प्रतीक्षा की पावन अग्नि में वो
आहुतियों सा जलता है…!!

जिसकी उदासी के रंग में ढलकर
हुई ये रातें काली हैं,
बीतें लम्हों की सोहबत में जिसने
इक लंबी उम्र गुजारी है..!!

वो जब भी कलम उठाता है, दर्द
संवर सा जाता है,
जिसकी मोहब्ब्त का सुरूर पल-पल
बढ़ता जाता है…!!

वो हर दिन हर पल चाहत की
नई इबारतें गढ़ता है
वो लड़का न कमाल मोहब्ब्त
करता है..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

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