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शहीदी

लगे मैले हर साल,
मालायें भी पहनायी फूलों की
पथरायी मूर्तियों को कई बार
मगर पत्थर की मूरत
कभी मुस्कुराई नहीं कभी
एक भी बार
पता नहीं क्यों!

 

 

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