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शिक्षा क्या है

कविता- शिक्षा क्या है
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शिक्षा जो कोई लेकर चलता,
उसको शिक्षा ले चलती है|
मान प्रतिष्ठा धन वैभव देती है।
जीवन का मार्ग सुगम कर देती है|
मन मस्तिष्क आत्मा विकसित हो,
उठे मन में –
विचार कल्पना वह भी तो शिक्षा है,
प्रकृति खुदा से मिली जो शक्ति,
अंतर मन के भावों को प्रस्तुत करना शिक्षा है,
मस्तिष्क को इस योग्य बनाएं,
सत्य खोज सत्य का सार बताएं,
सच्चाई को जब वह पाता है,
संपूर्ण शरीर को पंच तत्वों से निर्मित मानता है,
शिक्षा मानव को निर्मित करती,
मानव शिक्षा को निर्मित करता,
धन्य मनुष्य शिक्षा पाकर,
खुद मस्तिष्क को विकसित करता,
प्यार सिखाएं आदर्श सिखाएं,
समता स्वतंत्रता नैतिकता का पढाए,
सभ्य समाज जन जग हितकारी बनना,
प्रकृतिवाद संग बच्चों को संस्कार सिखाएं, अनहित द्वेष राग पाल रखा जो,
रूढ़ीवादी ,
ना हित समाज संस्कार जो मान रखे हैं,
लिंग भेद और-
जाति धर्म ,क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर,
जीव जन धन हित ,शिक्षा कदम बढ़ाती है,
जो कुछ सोचे जो कुछ समझें ,
कुछ भी जीवन में करता है,
भोग विलास चाहे मृत्यु पीड़ा,
कुछ बोलते हैं! जन्म के पूर्व से ही शिक्षा चलती है,
सब कोई अपना अपना मत प्रकट करते हैं,
पर यह कोई नहीं प्रकट करता है
जो प्रकट हुआ वह सब को प्रकट करता है,
उलझ गए सब की परिभाषा में,
सीखने सिखाने की शिक्षाकेवल एक प्रक्रिया है।
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**✍ऋषि कुमार’प्रभाकर’—–

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