Site icon Saavan

शिद्दत

कविता- शिद्दत
——————-

बड़ी शिद्दत से उसे चाहा था,
खुदा से दुआओं में उसे मांगा था|
पर समझ न सकी हमको यारो,
वह भरी महफिल में हमें रुलाया था|

उसके होठों की मुस्कुराहट ही ,
मेरे जीवन के पतवार बन गए|
हम प्यार में थे पागल इतना,
सबकी नजरों में बदनाम हो गए|

हर खता छिपा ली उसकी मैंने,
उसकी नजरों में शैतान बन गए|
जो दोस्त थे कल वजीर मेरे
आज वही उसके दिल मे,
बादशाह बन गए |
✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍
——– ऋषि कुमार “प्रभाकर”———

Exit mobile version