शिद्दत
कविता- शिद्दत
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बड़ी शिद्दत से उसे चाहा था,
खुदा से दुआओं में उसे मांगा था|
पर समझ न सकी हमको यारो,
वह भरी महफिल में हमें रुलाया था|
उसके होठों की मुस्कुराहट ही ,
मेरे जीवन के पतवार बन गए|
हम प्यार में थे पागल इतना,
सबकी नजरों में बदनाम हो गए|
हर खता छिपा ली उसकी मैंने,
उसकी नजरों में शैतान बन गए|
जो दोस्त थे कल वजीर मेरे
आज वही उसके दिल मे,
बादशाह बन गए |
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——– ऋषि कुमार “प्रभाकर”———
ब्यूटीफुल
Bahut khoob bhai
बहुत ख़ूब
बहुत सुंदर
हर खता छिपा ली उसकी मैंने,
उसकी नजरों में शैतान बन गए|
जो दोस्त थे कल वजीर मेरे
आज वही उसके दिल मे,
बादशाह बन गए |
वाह, वाह, भावपूर्ण कविता।
सुंदर
सुन्दर
बहुत खूब।