शिद्दत

कविता- शिद्दत
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बड़ी शिद्दत से उसे चाहा था,
खुदा से दुआओं में उसे मांगा था|
पर समझ न सकी हमको यारो,
वह भरी महफिल में हमें रुलाया था|

उसके होठों की मुस्कुराहट ही ,
मेरे जीवन के पतवार बन गए|
हम प्यार में थे पागल इतना,
सबकी नजरों में बदनाम हो गए|

हर खता छिपा ली उसकी मैंने,
उसकी नजरों में शैतान बन गए|
जो दोस्त थे कल वजीर मेरे
आज वही उसके दिल मे,
बादशाह बन गए |
✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍
——– ऋषि कुमार “प्रभाकर”———

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Responses

  1. हर खता छिपा ली उसकी मैंने,
    उसकी नजरों में शैतान बन गए|
    जो दोस्त थे कल वजीर मेरे
    आज वही उसके दिल मे,
    बादशाह बन गए |
    वाह, वाह, भावपूर्ण कविता।

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