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शुभचिँतक- कविता

वो सब्र का पाठ तो पढ़ाते थे
बेसब्र ना हो,सब ठीक होगा !
फिर इम्तिहानों के दलदल में
खुद बेसब्र हो,अकेला छोड़ जाते थे!
हालातों से लड़ते हम वहीँ के वहीँ रह जाते थे!

वो आकर अक्सर,हमको ढाँढस बंधाते थे
दर्द को सहन करो सब ठीक ही होगा !
फिर वैसे ही ज़ख्मों को कुरेदकर
नमक छिड़कते चले जाते थे
ज़ुल्म सहन करते हम वहीँ के वहीँ रह जाते थे!

वो आते,आकर बड़ी हिम्मत दे जाते थे,
मज़बूती से आगे बढ़ो सब ठीक होगा!
और फिर उन हालातों से पीछा छुड़ा
घबराकर उलटे पाँव लौट जाते थे
वाह रे शुभचिंतक!हम तो वहीं रह जाते थे !

खीज़ कर एक दिन हम बुदबुदा ही उठे,
झल्लाकर सवाल कुछ कर ही बैठे
क्यों चले आते हो चिंतन करने
जब दर्द का मेरे एहसास नहीं
भले का जामा पहन,बनते हो शुभचिँतक
पर किंचित चिंता स्वीकार नहीं

जब मेरी ही लड़ाई और है मेरा संघर्ष
जिसे एकल दम पर मैंने है भोगा
तुम्हारी हमदर्दी की ज़रूरत नहीं
नहीं चाहिए अपनेपन सा धोखा
ठीक होगा या नहीं,इसमें हमको अब पड़ना नहीं
और हाँ आकर ये भी कहने की ज़रूरत नहीं
सब ठीक होगा……..सब ठीक होगा
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से

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