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सच कैसी मुश्किल की घडी है

जिसने हमें सम्हाला कितने प्यार से पाला
आज उसे सम्हालने की पड़ी है
सच कैसी मुश्किल की घडी है

माँ जो हमपे गर्व थी सदा ही करती
संकट में आज है हमारे कारण वो धरती
ऐसा भी कहीं होता है कैसी आफत आ पड़ी है …

इक दूजे से प्यार का रिस्ता रहा है हमारा
मुश्किलों में हमें सदा मिला है सहारा
हरकतों से हमारे कितनी सहमी वो डरी है …

वसुंधरा का सहारा हमें ही होना है
पाकर सुनहरा साथ इतनी जल्दी नहीं खोना है
सुरक्षा की खातिर अब जोड़ना हर कड़ी है …

अपनी सारी गलतियों को हम जल्द सुधारेंगे
इस पवित्र रिश्ते को पावन फिर से बनाएंगे
बेकार चीजों की अब जरुरत हमें नहीं है …

जिसके कारन बीता हर दिन दिवश सुनहरा
जिनके रंगो से खिलकर प्यार होता गया गहरा
उसके सुरक्षा के खातिर दिवश मनानी पड़ी है …

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