Site icon Saavan

सड़क के उस पार दीवाली

दीवाली के दीप सजाने,
जब आई मैं घर के द्वार
तो मैंने देखा सड़क के उस पार,
एक कुटिया में दो दीए टिमटिमा रहे थे
रौनक भी कुछ ख़ास ना थी,
एक बच्ची कुछ दूर खड़ी थी,
मेरे घर के पास ना थी
फ़िर मैं घर के भीतर आकर,
कुछ फल,मिठाई, दीए,पकवान लेकर
चल पड़ी उस ओर
कानों में पड़ा कुछ शोर
निकट जा रही थी उस कुटिया के,
दूर से जो दीए, टिमटिमाते लग रहे थे
वो अब मुस्कुराते लग रहे हैं
दो बालक बाहर ही मिल गए,
मुझे देख कर उनके मुख खिल गए
उनकी मां भी बाहर आ गई,
बोली,आपके आने से दीदी,
मेरी कुटिया में बहार आ गई
मेरा त्यौहार भी मन जाएगा,
मेरे बच्चे भी खाएंगे मिठाई,वो बोली
मैंने कहा, क्यूं नहीं, तुम्हें भी शुभ-दीवाली

*****✍️गीता

Exit mobile version