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सावन जी उठता है

तुम रहती हो तो
सावन पर बहार रहती है..
तुम्हारे दम से ही तो
सावन की महफिल सजती है..
सूना हो जाता है सावन
आ जाती है पतझड़,
जो तुम एक दिन भी नहीं आती हो..
जैसे ही आती हो
रोम रोम खिल उठता है
सावन जी उठता है..

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