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सुख अनुभव

रोज-रोज के झंझट में
पिस्ता था तो क्या खुश था तू
दो घड़ी अपनों का साथ मिला
अब कर अनुभव सुख किसने है
यह रोज कि भागा दौड़ी में
या कुछ पल की उस जोड़ी में
उस जग की द्वेष चिंगारी में
या बच्चों की किलकारी में
जीवन जीता तू लाचारी में
अब सोच तेरा मन किसमें है
जब झंझट तेरे पल्ले थी
तब अपनों से चिढ़ जाता था
कभी कोप करता था माता पर
कभी पिता को आंख दिखाता था
तू बैठ प्रेम की छाया में
फिर से सुख प्रेम का अनुभव कर
वह स्नेह आंचल में लेंगे तुझे
बन बालक यौवन को खोकर

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