अपनी सुताओ को वह ज्ञान दे दे
माँ की तरह उन्हें भी थोङा प्यार वो दे दे।
दोष उनका क्या जो हदन में अकेले हैं
दूर सुत उनका क्यूँ स्वप्नों से खेले हैं ।
बङी हसरत थी उनकी जो आंखो का तारा है
सफलता की बुलन्दी को चुमे, जो प्राणों से प्यारा है
जिसकी पढाई में जर-जमीन तक बेचें
भूखे रहके, दुख सहके, आशाओं के पौध को सीचे
जुदा मत कर, जिगर के उस टुकड़े को
अपनों के बीच में उन्हें भी, उनका स्थान वो दे दे।
यह कहानी है अधिकांश उस अभिभावक की
चिन्ता फिर भी जिन्हें, अपने सुत के हिफाज़त की
हर दिवाली अकेले इस आश में गुजरती है
निगाहें उनकी, उस पथ पर जाके ठहरती है
कभी तो उनकी पूरी यह आश वो कर दे
माँ की तरह थोड़ा उन्हें भी थोड़ा प्यार वो दे दे।