सुता को ज्ञान

अपनी सुताओ को वह ज्ञान दे दे
माँ की तरह उन्हें भी थोङा प्यार वो दे दे।
दोष उनका क्या जो हदन में अकेले हैं
दूर सुत उनका क्यूँ स्वप्नों से खेले हैं ।
बङी हसरत थी उनकी जो आंखो का तारा है
सफलता की बुलन्दी को चुमे, जो प्राणों से प्यारा है
जिसकी पढाई में जर-जमीन तक बेचें
भूखे रहके, दुख सहके, आशाओं के पौध को सीचे
जुदा मत कर, जिगर के उस टुकड़े को
अपनों के बीच में उन्हें भी, उनका स्थान वो दे दे।
यह कहानी है अधिकांश उस अभिभावक की
चिन्ता फिर भी जिन्हें, अपने सुत के हिफाज़त की
हर दिवाली अकेले इस आश में गुजरती है
निगाहें उनकी, उस पथ पर जाके ठहरती है
कभी तो उनकी पूरी यह आश वो कर दे
माँ की तरह थोड़ा उन्हें भी थोड़ा प्यार वो दे दे।

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Responses

  1. बहुत ख़ूब सुमन जी, जिनके बेटे दूरस्थ स्थानों पर है उनके माता पिता की वेदना का वर्णन। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है, कि कभी कभी बच्चों को अपने करियर के लिए भी दूर जाना पड़ता है।
    आवश्यक तो नहीं कि घर से दूर तो दिल से दूर…… तसवीर के दूसरे रूख के बारे में विचार जरूर कीजिएगा।

    1. बहुत बहुत धन्यवाद गीताजी
      मेरी यह रचना उन अभिभावकों को समर्पित है जिनके पुत्र अपने बच्चों, पत्नी के साथ बाहर में ही अपनी दुनिया बसा लेते हैं। उनके इस परिवार में माता-पिता के लिए स्थान नहीं ।थोङी सी जमीन या वृद्धा पेंशन के सहारे उन्हें गाँव में अकेले छोङ देते हैं ।पुत्र अगर लौटना भी चाहता तो उसे पत्नी और बच्चे लौटने नहीं देते। हर तरह के षड्यंत्र रचती है ताकि उन्हें वापस न जाना पङे।
      यह हमारे ग्रामीण भारत के कयी घङो की जीवंत झांकी है ।

  2. वाह, आपकी कविता यथार्थ पर आधारित है। बच्चे बड़े होकर दूसरे शहर में बस जाते हैं। बूढ़े माता-पिता अकेले रह जाते हैं। कविता में भाव की प्रधानता है। आप जीवन मे प्रचलित शब्दों के बीच संस्कृत शब्दों की मौजूदगी शिल्पगत सौंदर्य में अभिवृद्धि कर रही है।

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