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सुनो वनिता

संसार द्वारा रचित तुम्हारी महानता
के प्रतिमान वास्तव में षड्यंत्र हैं
तुम्हारे विरुद्ध…!!
तुम सदा उलझी रही स्वयं को उन
प्रतिमानों के अनुरूप ढालने में
और वंचित रही अपने सुखों से..!!

सुनो वनिता!
जब तक तुम अनभिज्ञ हो इस तथ्य से कि
“तुम्हारा सुख तुम्हारी महानता में नहीं
वरन तुम्हारे साधारण होने में है”…
तब तक ये सृष्टि हो नहीं सकेगी
तुम्हारे योग्य…!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(08/03/2021)

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