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सूर्य उपासना

हम आधुनिक होते जा रहे
हमारी आस्था आज भी वही
हम उपासको के लिए
सूर्य परिक्रमण कर रहा
पृथ्वी है स्थिर।
दर्शाता रह पर्व
लोक-आस्था विज्ञान पर है भारी
सदियो से प्रारम्भिक रूप मे
सूर्य उपासना है जारी।
लोकगीतो मे चलते-चलते सविता
थककर अस्त हो गयी
पुनः उठकर अपनी स्वर्ण आभा से
प्रकाशित जग को कर रही।
सदिया गुजर गयी
कयी बदलाव आ गये है
पर आझ भी दिनकर को
लङुआ-पकवान भा रहे है।
देशी हस्त निर्मित वस्तुओ का
उपयोग कर रहे है
बास की है डलिया
पान-सुपारी,
फलो का भोग चढा रहे है।
दिखावो से दूर आडम्बरो की
इसमे कोयी जगह नही
सिर्फ श्रद्धा- सुमन से
दिनकर लुभा रहे।

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