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सोना बाबू

हास्य कविता,सोना बाबू
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रात रात जग के हम
पढ़ाई करते थे|
मेरे पड़ोसी-
फोन पकड़ के चुमा करते थे|

आया समय जब पेपर का,
वो रोया करते थे|
सोना बाबू फेल हुए,
बाबू लड़की से-
कोचिंग करते थे|

रात रात जागकर,
वो उपदेश देते थे,
चटनी खा के जीवन गुजरे,
लाखों में वह बात करते थे|

बड़े घरे के बिगड़े बच्चे,
पैसा खूब उड़ाते हैं|
खैनी गुटखा सिगरेट पीते-
रोज सिनेमा रूम पे आके पार्टी करते हैं|

मजदूर किसान के बच्चे तुम,
इनकी नकल क्यों करते हो,
इनके घर तो धन का खजाना,
इनके संग क्यों रहते हो|

करो पढ़ाई मन से यारों ,
या घर आकर बैठो तुम,
बन जा काबिल दुआ है मेरी,
ले छोरी फिर बैठो तुम|

मात पिता और –
कुल का गौरव बन जाओ,
इतिहास रचो और बनो उदाहरण,
ऐसा जीते जी कुछ कर जाओ|
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——ऋषि कुमार “प्रभाकर”——–

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