कुछ लिखने का मन ना करता
शब्द न जाने छीने किसने
बिखरी-बिखरी मेरी कल्पनाएं
रूढ़ हुए जाते सपने
प्यारी लगती अब तो तन्हाई
मीठी मीठी तेरी यादें
पर फिर भी ना लिख पाऊं मैं
स्याही मेरी सूख गई अब
कलम भी ना अब डिग पाए
कुछ लिखने का मन ना करता
शब्द न जाने छीने किसने
बिखरी-बिखरी मेरी कल्पनाएं
रूढ़ हुए जाते सपने
प्यारी लगती अब तो तन्हाई
मीठी मीठी तेरी यादें
पर फिर भी ना लिख पाऊं मैं
स्याही मेरी सूख गई अब
कलम भी ना अब डिग पाए